Laibility to Tax on Inter State Sales under Central Sales Tax Act 1956 in Hindi

हेलो दोस्तों।

इस पोस्ट में अन्तर्राजीय विक्रय पर कर दायित्व के बारे में जानेंगे।


अन्तर्राजीय विक्रय पर कर दायित्व (Laibility to Tax on Inter State Sales)

राज्य विक्रय कर अधिनियमों की भांति केंद्रीय विक्रय कर अधिनियम के अंतर्गत कोई कर योग्य सीमा नही है। कोई भी व्यापारी जो अन्तर्राजीय व्यापार की प्रक्रिया में माल विक्रय करता है, उसको इस अधिनियम के अंतर्गत कर देना होगा। अधिसूचना के अनुसार कर दायित्व 1 जुलाई 1957 से आरम्भ हो गया है।



Laibility to Tax on Inter State Sales under Central Sales Tax Act 1956 in Hindi
Laibility to Tax on Inter State Sales under Central Sales Tax Act 1956 in Hindi



केंद्रीय विक्रय कर लगाने के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण तथ्य

1. प्रत्येक ऐसे व्यापारी को जो अन्तर्राजीय व्यापार की प्रक्रिया में माल बेचता है, कर देना अनिवार्य है, उसका विक्रय चाहे जितना कम हो।


2. यह कर अन्तर्राजीय व्यापार के अंतर्गत बेचे गए माल पर लगता है खरीद पर नही।


3. बिजली की विक्रय पर यह कर नही लगाया जाता।


4. यह कर इस अधिनियम के अन्य प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए लगाया जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि इस अधिनियम के अन्य प्रावधान किसी विक्रय को कर मुक्त घोषित करते है तो इस धारा के अंतर्गत कर नही लगाया जाएगा।


अन्तर्राजीय क्रय विक्रय में ऐसा अंतिम विक्रय कर मुक्त होगा जो निर्यात को पूरा करने के लिए किया गया हो।


पुनविक्रय की दशा में कर से मुक्ति

पुनविक्रय - जब माल का क्रय विक्रय अन्तर्राजीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान किया जाता है और क्रेता व्यापारी उस माल से सम्बंधित प्रलेखों का हस्तांतरण करके ऐसे माल को उस समय बेच दे जब माल मार्ग में हो तो ऐसा विक्रय पुनविक्रय कहलाता है।

घोषित माल के बारे में जाने

उदाहरणार्थ, रमेश, सुरेश को अन्तर्राजीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान कुछ माल बेचता है। जब माल मार्ग में है, सुरेश माल से सम्बन्धित प्रलेखों का हस्तांतरण करके उसे महेश को बेच देता है तो सुरेश द्वारा महेश को की गयी विक्रय पुनविक्रय कहलाती है। इसी प्रकार अगर महेश भी उस माल को जब वह मार्ग में है सम्बन्धित प्रलेखों का हस्तांतरण करके गणेश को बेच दे तो यह भी पुनविक्रय होगा।

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